सहजन (Moringa oleifera): नाम व आयुर्वेदिक गुण-धर्म
सहजन (Moringa oleifera) को आयुर्वेद में शोभान्जन, तीक्ष्णगंधक, अक्षीव, मोचक अथवा शिग्रु कहते हैं और इसका वानस्पतिक नाम “मोरिंगा ओलिफेरा” है। महर्षि सुश्रुत और आचार्य वागभट्ट ने सहजन को वरुनादि वर्ग की औषधियों में रखा है जबकि भावप्रकाश निघंटु में इसे गुडुच्यादी वर्ग की औषधियों में स्थान दिया गया है। भारत में सहजन के तीन प्रकार होते हैं- श्याम, श्वेत तथा लाल। सहजन के बीज को श्वेतमारिच कहते हैं; लाल सहजन को मधुशिग्रु और श्याम सहजने को शिग्रु कहते हैं। भावप्रकाश संहिता हिन्दी भाषा टीका “भिषग्रत्न श्री ब्रह्मशंङ्कर शर्मा” के अनुसार-
- शिग्रु अर्थात श्याम सहजन स्वाद तथा पाक में कटुरसयुक्त, तीक्ष्ण, उष्णवीर्य, मधुर, लघु, अग्निदीपक, रोचक, रुक्ष, क्षार, तिक्तरसयुक्त, दाहकारक, मलावरोधक, शुक्रजनक, हृदय को हितकर, पित्त-रक्त को कुपित करने वाला, नेत्रों को हितकर, कफ-वात नाशक एवं विद्रधि, शोथ, कृमि, मेदरोग, अपची, विष, प्लीहा, गुल्म, गलगंड और व्रण का नाशक होता है।
- इसी प्रकार से सफेद सहजन के भी गुण हैं, किंतु वह विशेषकर के चरपारा, तीक्ष्ण, शोथनाशक, वातनाशक, वेदनानाशक, रुचिकारक, अग्निदीपक और मुंह की जड़ता को दूर करने वाला, दाहकारक तथा प्लीहा, विद्रधि, व्रण और पित्त-रक्त रक्त का नाशक होता है।
- मधुशिग्रु अर्थात लाल सहजन के भी पूर्वोक्त सभी गुण हैं किंतु विशेष करके वह अत्यंत वीर्यवर्धक, मधुर, रसायन, सूजन, वात, पित्त और कफ को हरने वाला, अग्निदीपक तथा सारक होता है।
स्वास्थ्य का संरक्षक सहजन (Moringa oleifera): प्रत्येक भाग में अमृत
सहजन की छाल तथा पत्तों का स्वरस असह्य पीड़ा को दूर करने वाले होते हैं। सहजन के बीज नेत्रों को हितकर, तीक्ष्ण, उष्णवीर्य, विषनाशक, अवृष्य* और कफ़-वात नाशक होते हैं। सहजन के बीजों के चूर्ण (moringa powder) का नस्य लेने से सिर की पीड़ा दूर होती है।
सहजन के मूल की ताजी छाल उष्ण, कटु, दीपन, पाचन, उत्तेजक, वतानुलोमक, वातहर, कफहर, कृमिघ्न, शिरोविरेचन, स्वेदजनन, मूत्रजनन चाक्षुष्य, शोथहर एवं व्रणदोष नाशक है। वृक्कशोथ में इसका प्रयोग मना किया गया है। इसका बाह्य लेप त्वग्रागकारक*? है। इसका उपयोग अपची, गुल्म, विद्रधि, प्लीहावृद्धि, कृमि, रजःकृच्छ, हिक्का, श्वास, कफज्वर, पाचन के विकार एवं व्रण में किया जाता है। इसके नये वृक्ष की मूल को ज्वर, अपस्मार, अपतन्त्रक, अंगघात, जीर्ण आमवात, जलोदर, यकृतवृद्धि, प्लीहावृद्धि तथा अपचन में देते हैं।
मुखजात(जाढ्य), अर्दित, पक्षाघात आदि वातनाणीसंस्थान के रोगों के उपचार हेतु इसके स्वरस का प्रयोग किया जाता है। गले की शिथिलता, मुखविकार, कृमिदन्त में इसके काढ़े का कुल्ला करते हैं। छाल के गुनगुने लेप को सन्धिशोथ तथा शरीरशूल में प्रयोग किया जाता है। इसके बीजों के तेल की मालिश संधिवात, आमवात तथा वात-रक्त में की जाती है। इसका गोंद ग्राही होता है और आमवात में उपयोगी होता है। इसके पुष्प को दूध में उबालकर वाजीकरण (#) में पिलाया जाता है। इसकी फली का साग आंत्रकृमिप्रतिवधक (आंत्रकृमिप्रतिवेधक)* माना जाता है। इसके कोमल पत्तों का साग खाने से से सौच साफ़ होता है।
वन औषधि चंद्रोदय के मतानुसार
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- सहजन चरपरा, विपाक में चरपरा, तीक्ष्ण, उष्ण, मधुर, हलका, अग्नि दीपक, रुचिकारक, रुखा, कड़वा, दाह पैदा करने वाला, मलरोधक, शुक्रवर्धक, हृदय को हितकारी, पित्त को कुपित करने वाला, रुधिर को दूषित करने वाला, नेत्रों को हितकारी तथा कफ, वात, विद्रधि, सूजन, कृमि, मेदरोग, अग्निमांद्य, विष, प्लीहा, गुल्म, गंडमाला, और व्रण को दूर करने वाला होता है।
- इसकी जड़ की छाल तीक्ष्ण, गर्म, मधुर, कुछ कड़वी, पाचक, आँतों के लिए संकोचक, कामोद्दीपक (#), विषनाशक, कृमिनाशक, वेदनाशामक, दाह और पित्त को पैदा करने वाली, रक्त को दूषित करने वाली और भूख बढ़ाने वाली होती है। यह ह्रदय रोग, नेत्र रोग, कफ, वात, त्रिदोषजन्य ज्वर, सूजन, अग्निमांद्य, तिल्ली की बढ़त, क्षयजनित कण्ठमाला, अर्बुद, व्रण, कर्णशूल और जबान की हकलाहट में लाभ पहुंचाती है।
- इसके पत्ते स्वादिष्ट, शीतल, नेत्रों को हितकारी, वेदना को दूर करने वाले, कामोद्दीपक (#) और कृमिनाशक होते हैं। यह नेत्ररोग, वात और पित्त विकार में भी लाभ पहुंचाते हैं। नशा, मतिभ्रम, हिचकी और दमा को दूर करते हैं। इसके फूल चरपरे, तीक्ष्ण, गरम, सूजन को नष्ट करने वाले तथा तिल्ली की बढ़त, स्नायु रोग, मासपेशियों के रोग, विद्रधि और कफ, वात सम्बन्धी रोगों को दूर करने वाले होते हैं।
- सहजन ((Moringa oleifera)) की फली मीठी, कसैली, कफ पित्तनाशक तथा शूल, कोढ़, श्वास और अफरा को दूर करने वाली होती है। यह अग्नि दीपक भी होती है। सहजने के बीज तीक्ष्ण, गरम, नेत्रों को हितकारी, विषनाशक और मस्तक शूल को दूर करने वाले होते हैं। इनका तेल अनेक प्रकार की खुजली और व्रणों में उत्तम लाभ पहुंचाता है। सहजन की छाल और पत्तों का स्वरस तीव्र वेदना को दूर करता है।
यूनानी चिकित्सा मत के अनुसार इसकी जड़ कड़वी, शरीर और फेफड़ों के लिए पौष्टिक, ऋतुस्राव नियामक, मृदुविरेचक, कफनिस्सारक, मूत्रल, रक्त को बढ़ाने वाली, सूजन को बिखेरने वाली तथा गले के रोग, छाती के रोग और जख्म, खांसी, बवासीर, भूख बन्द होना, मुखरोग, पुराने प्रमेह, अनैच्छिक वीर्यश्राव, दुःसाध्य दमा और कटिवात में लाभ पहुंचाती है। यह पित्त को बढ़ाती है। इसके फूल कृमिनाशक, कफनिस्सारक और पित्तविकार तथा खांसी को दूर करने वाले होते हैं।
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- यूनानी हकीम इसकी फली को तिल्ली और यकृत की वृद्धि में, जोड़ों की सूजन और वेदना में, धनुर्वात में और लकवे के उपयोग में लाते हैं। इसकी जड़ को यह लोग मुंह और गले के क्षत में लाभदायक मानते हैं। इसके गोंद को ये दांतों की सड़न में उपयोगी समझते हैं।
डॉक्टर देसाई के अनुसार Moringa oleifera एक उत्तम अग्नि दीपक है। शरीर के अंदर इसकी क्रिया हार्सरेडिश (आर्मोरेशिया रस्टिकाना) नामक यूरोपीय औषधि की क्रिया के समान होती है। इसकी पाचक क्रिया अनन्नास तथा पपीते के समान प्रत्यक्ष रूप से नहीं होती, बल्कि यह अप्रत्यक्ष रूप से अमाशय की रक्त संचालन क्रिया को बढ़ाकर अधिक पाचन रस को उत्पन्न करती है। जिससे अन्न तीव्रता से हजम हो जाता है।
ज्वर के अन्दर सहजने का प्रयोग रोगी को सर्वंगानीय लाभ पहुंचाता है; पसीना होता है, पेशाब होता है और मज्जातन्तु तथा ह्रदय को उत्तेजना मिलती है। कफ़ ज्वर में इसकी छाल का रस दिया जाता है। मज्जातन्तु सम्बन्धी रोग जैसे गठिया, लकवा, अर्दित, सन्धिवात, इत्यादि रोगों में छाल का स्वरस लाभकारी होता है।
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- देशी चिकित्सक इसकी जड़ को लकवा अथवा अर्द्धांग वायु, पर्यायिक ज्वर, मिर्गी, हिस्टीरिया, पक्षाघात और जीर्ण सन्धिवात में इसका प्रयोग करते हैं।
लेकिन मुत्रपिंड की खराबी और सूजन के कारण उत्पन्न शारीरिक सूजन में इसका उपयोग कदापि नहीं करना चाहिए। महाराष्ट्र में इसका गोंद गर्भघातक माना जाता है। दक्षिण भारत में सहजने के फूलों का उपयोग कामोद्दीपक के रूप में बहुत होता है, परन्तु वनौषधि चन्द्रोदय (1938) के रचयिता श्री चन्द्रराज भण्डारी के अनुभूत कथनानुसार ये फूल इस इस कार्य (कामोद्दीपन) में एकदम असफल साबित हुए हैं; हांलाकि ये थोड़े उत्तेजक अवश्य हैं लेकिन उतने नहीं कि सम्बन्धित बिमारियों पर अपना प्रभाव डाल सकें।#
- कुछ इसी प्रकार हाइपोथायरायडिज्म, पेप्टिक अल्सर, गैस्ट्राइटिस और किडनी की बीमारी वाले लोगों को हार्सरेडिश (आर्मोरेशिया रस्टिकाना) का उपयोग करने की मनाही की जाती है।
आयुर्वेदिक फर्मोकोपिया ऑफ़ इंडिया खण्ड-2 में सहजन (Moringa oleifera) की पत्तियों (moringa leaves) को शीतवीर्य, गुरु, रुक्ष, तीक्ष्ण, मधुर, चाक्षुस्य, बृंहण, मेदोहर, पित्तहर, वातहर, शुक्रनाशक, कृमिहर और शिरोविरेचक बताया गया है तथा शोफ, गुल्म, कृमिरोग, मेदरोग, प्लीहारोग, विद्रधि और गलगंड रोग में इनके प्रयोग का उल्लेख किया गया है। इससे रत्नागिरी रस, विषतिन्दुक तेल, एकांगवीर रस, अरग्वाधादि काषय, शोथघ्ना लेप. वरनादि काषय जैसी अनेक प्रशिद्ध आयुर्वेदिक शास्त्रीय औषधियां बनाई जाती हैं।
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सहजन (Moringa oleifera): वैश्विक कुपोषण और भुखमरी एक नई उम्मीद
भुखमरी, कुपोषण और अल्पपोषण पूरी मानवता के लिए सबसे बड़ा खतरा और आधुनिक सभ्य समाज के लिए संगीन कलंक हैं। डब्लूएचओ बताता है कि 2020 में पूरी दुनियाभर में लगभग सवा तेईस करोड़ बच्चे किसी न किसी तरह कुपोषण का शिकार थे और वर्तमान में पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मौतों में से 45% का कारण कुपोषण है। ऐसे में वैकल्पिक खाद्यों की तलाश एक गम्भीर जरूरत बन जाती है। इस सिलसिले में सहजन का पेड़ एक महत्वपूर्ण विकल्प का दावा प्रस्तुत करता है क्योंकि इस पेड़ का हर हिस्सा महत्वपूर्ण पोषक तत्वों का भंडार है। तो आइये मिलकर पड़ताल करते हैं…
सहजन की पत्तियां (moringa leaves) कैल्शियम, पोटैशियम, जिंक, मैग्नीशियम, आयरन और कॉपर जैसे खनिजों से भरपूर होती हैं। सहजन के पत्तों का कैलोरी मान भी कम होता है और मोटे लोगों के आहार में इसका उपयोग किया जा सकता है। फली रेशेदार होती हैं और पाचन समस्याओं का इलाज करने और पेट के कैंसर के लिए लाभकारी है। सहजन में विटामिन ए, विटामिन बी1, विटामिन बी2, विटामिन बी3, विटामिन बी5, विटामिन बी6, विटामिन बी9, विटामिन सी, विटामिन डी और विटामिन ई भी पाए होते हैं। टैनिन, स्टेरोल्स, टेरपेनोइड्स, फ्लेवोनोइड्स, सैपोनिन्स, एंथ्राक्विनोन, एल्कलॉइड्स आदि अनेक फाइटोकेमिकल्स के साथ कई कैंसर-रोधी एजेंट भी पाए जाते हैं। कच्ची फली और फूलों में लगभग समान मात्रा में पामिटिक, लिनोलेनिक, लिनोलिक और ओलिक एसिड होते हैं।
सहजन में बहुत सारे खनिज होते हैं जो इंसान की वृद्धि और विकास के लिए आवश्यक होते हैं। कैल्शियम उन महत्वपूर्ण खनिजों में से एक है जो सहजन में दूध से अधिक पाया जाता है। सहजन (Moringa oleifera) में इतना लौह तत्त्व पाया जाता है कि इसके चूर्ण (moringa powder) को को आयरन की पूरक गोलियों के विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। सहजन में पालक की तुलना में अधिक आयरन होता है। शुक्राणु कोशिकाओं के उचित विकास के लिए जस्ता का एक जरूरी पोषक तत्त्व है तथा यह डीएनए और आरएनए के संश्लेषण के लिए भी आवश्यक है। सहजन की पत्तियों (moringa leaves) में जिंक* पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है (Zinc 2.5–3.1mg/100gm ~बर्मिनस, et al. 1998.)।
वास्तव में देखा जाए तो सहजन (Moringa oleifera) की पत्तियों और फूलों के एक्सट्रैक्ट में संतरे से 7 गुना अधिक विटामिन-सी, गाजर से 10 गुना अधिक विटामिन-ए, दूध से 17 गुना अधिक कैल्शियम, दही से 9 गुना अधिक प्रोटीन, केले से 15 गुना अधिक पोटेशियम और पालक से 25 गुना अधिक आयरन होता है (~रॉकवुड et al. 2013)। सहजन अर्क/एक्सट्रैक्ट से अन्य खाद्यों की यह तुलना अतिश्योक्ति लगती है मगर मुख्य तथ्य यह है कि मोरिंगा आसानी से खेती योग्य है, यह कुपोषण के लिए एक स्थायी उपाय साबित हो सकता है है। जैसे सेनेगल और बेनिन जैसे देश सहजन से बच्चों का इलाज करते हैं।
आवश्यक फैटी एसिड ओमेगा-3 और ओमेगा-6 पॉलीअनसेचुरेटेड फैटी एसिड (पीयूएफए) होते हैं। नेशनल कैंसर इंस्टिट्यूट @ नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ (यूएसए) के अनुसार कुछ पीयूएफए के सेवन से रक्तचाप, सीरम लिपिड और सूजन पर लाभकारी प्रभाव पड़ सकता है। कुछ पीयूएफए जैसे कि ओमेगा-3 में एंटीइनोप्लास्टिक या कीमोप्रिवेंटिव गतिविधियां हो सकती हैं। इनमें कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने की क्षमता होती है। अनुसंधाdनों में पता चला है कि सहजन के बीजों के तेल में लगभग 76% पॉलीअनसेचुरेटेड फैटी एसिड पाया जाता है, जो इसे जैतून के तेल के बेहतर विकल्प के रूप में उपयोग करने के लिए आदर्श बनाता है ~लालस, et al. 2002।
देखिए मैने तो सहजन के बारे में लिखते लिखते Moringa oleifera की पत्तियों और फूलों का प्रयोग चावल व आलू-शकरकंद-गोभी की सब्जी में कर भी लिया। यह बेहद मजेदार रहा। 😋
ध्यान देने वाली बात यह है कि पोषक तत्वों की संरचना स्थान के आधार पर भिन्न होती है और मौसम, स्थान, जलवायु, मृदा और पर्यावरणीय कारक सहजन के पेड़ के पोषक तत्वों को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करते हैं। जैसे गर्म-आर्द्र मौसम में विटामिन-ए प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, जबकि शीत-शुष्क मौसम में विटामिन-सी और आयरन अधिक होता है। यूएसडीए फूड डेटा सेन्ट्रल के अनुसार सहजन की पत्तियों और फलियों में उपलब्ध पोषक तत्वों की पूरी सूची चित्र-तालिका में लगा दी है। (इन आंकड़ों के मिलान में थोड़ा भ्रमित हो सकते हैं लेकिन यदि इसकी कच्ची फलियाँ और पत्तियों के साथ उसके चूर्ण, अर्क, तेल इत्यादि को ध्यान रखेंगे तो आसान हो जाएगा।)
हालांकि यूएसडीए फूड डेटा सेन्ट्रल के आंकड़ों में सहजन ((Moringa oleifera)) की फलियों में एमिनो अम्ल की जानकारी नहीं दी गई है लेकिन सांचेज़-मचॉदो, et al. 2010 ने सहजन के कच्ची फलियों और फूलों में भी एमिनो अम्लों की मौजूदगी की पुष्टि की है।
नियाज़िरिडिन (niaziridin) की तरह के नाइट्राइल ग्लाइकोसाइड, सहजन (Moringa oleifera) में पाए जाते हैं जो स्वयं दवाओं के रूप में तो कार्य नहीं करते हैं, लेकिन वे दवाओं के प्रभाव को बढ़ाने के लिए जाने जाते हैं। उदाहरण के लिए, नियाज़िरिडिन शरीर को एंटीबायोटिक दवाओं के साथ-साथ विटामिन और पोषक तत्वों को बेहतर अवशोषित करने में मदद करता है।
Source:
- Ayurveda Classical Text
- महर्षि सुश्रुत. (800BCE – 600BCE). सुश्रुत संहिता.
- Acharya Charak. (100BCE – 200CE). Charak Samhita.
- Mishra, Bhav. (1500-1600AD). Bhavprakash Samhita.
- Sen, Govind Das. (1925AD). Bhaishajya Ratnavali.
- Bhandari, Chandraraj (1938AD). Vanoushadhi Chandroday.
- Modern Reseach Papers
- Pareek A, Pant M, Gupta MM, et al. Moringa oleifera: An Updated Comprehensive Review of Its Pharmacological Activities, Ethnomedicinal, Phytopharmaceutical Formulation, Clinical, Phytochemical, and Toxicological Aspects. Int J Mol Sci. 2023;24(3):2098. Published 2023 Jan 20. doi:10.3390/ijms24032098
- Kesarwani K, Gupta R, Mukerjee A. Bioavailability enhancers of herbal origin: an overview. Asian Pac J Trop Biomed. 2013;3(4):253-266. doi:10.1016/S2221-1691(13)60060-X
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