आयुर्वेद में संक्रामक रोग की कल्पना में बैक्टीरिया, वायरस आदि रोगाणुओं को कारण नहीं माना जाता है अपितु इन्हें संवाहक अथवा संचारक मात्र माना जाता है। आयुर्वेद के अनुसार अगर शरीर में दोषों का अनुलोमन होगा और धातुएं पुष्ट होंगी तो कृमियां उपस्थित होने के बाद भी रोग नहीं उत्पन्न होगा अर्थात रस आदि धातुओं की कमजोरी से रोग होते हैं न कि वायरस से।
यहीं पर यह बात स्पष्ट हो जाती है कि कैसे कुछ लोगों को करोना विषाणु निगल गया जबकि अधिकतर लोगों (बीमार और उनके तीमारदार/परिवार) के लिए यह बहुत कष्टकारी रहा वहीं बहुत थोड़े लोगों पर यह बेअसर साबित हुआ, जिन्हें प्राकृतिक रूप से करोना वायरस के लिए इम्यून कहा/माना गया।
COVID-19 का वायरस/विषाणु सबसे पहले श्वसनतंत्र को संक्रमित कर क्षतिग्रस्त करता है जिसके कारण शरीर के अन्य अंगों में प्राणवायु/ऑक्सीजन की आपूर्ति प्रतिकूल रूप से प्रभावित होती है और वे सुचारू रूप से काम करने में असमर्थ हो जाते हैं। इस कारण मस्तिष्क, हृदय, गुर्दे आदि अंग भी क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। ऐसी स्थिति से निपटने के लिए प्राणवाही श्रोतों (फेफड़ों) को बल देते हुए प्रभावित अंगों का उपचार करना चाहिए। इस संदर्भ में रसायन औषधीय का सेवन एक सर्वोत्तम विकल्प के रूप में काम कर सकता है, क्योंकि –
महर्षि सुश्रुत के अनुसार आयुर्वेद में रसायन तंत्र वह शाखा है जो वयःस्थायक, आयु संवर्धक, बुद्धिवर्धक, और उसके अलावा रोग प्रतिरक्षा प्रणाली को संवर्धित करके रोगों को ठीक करने की क्षमता होती है।
भैषज्य रत्नावली के अनुसार रसायन का सेवन स्वस्थ व्यक्तियों अथवा रोग आदि से दुर्बल एवं कृश व्यक्तियों को अथवा किसी प्रकार के कारणों के बगैर ही दुर्बलता एवं कृषता का अनुभव होने पर अथवा शारीरिक एवं मानसिक दुर्बलता का अनुभव होने पर अथवा बुद्धि वर्धन स्मृति वर्धन कान्ति वर्धन अथवा स्वर शरीर चक्षुरादि इन्द्रिय एवं वृषता को वृद्धि करने के लिए रसायन का सेवन करना चाहिए।
योगरत्नाकर रसायन के सेवन से शरीर की सातों धातुओं की तथा बुद्धि एवं स्मृति आदि की प्रसिद्ध एवं अद्भुत वृद्धि होती है परिणामता अकाल जरा के लक्षण दूर हो जाते हैं और नष्टप्राय यौवन का पुनः अनुभव होने लगता है। पूर्वत् अथवा उससे भी उत्तम स्वास्थ्य का लाभ होता है।
कुल मिलाकर रसायन औषधियां न सिर्फ करोना संक्रमण के दीर्घकालीन लक्षणों (Long COVID) से निपटने में कारगर बल्कि अन्य प्रकार के विकारों से भी बचाव करने कारगर शाबित हो सकती हैं।
मस्तिष्क को बल देने और उत्पन्न हुए किसी भी प्रकार के विकार को नष्ट करने के लिए अश्वगंधा के साथ में मण्डुकपर्णी, शंखपुष्पी, यष्टीमधु और अमृता जैसी मेद्यरसायन तथा ऐन्द्री, जटामांसी, कुष्मांडा और ज्योतिषमती जैसी औषधियां बेहद कारगर साबित हो सकती हैं।
अश्वगंधा और अर्जुन के अलावा शतावरी, हरिद्रा, त्रिफला, हरीतकी, आँवला, पिपली, मारिच आदि औषधीयां हृदय के लिए अत्यंत हितकारी हैं। पुनर्नवा, गोक्षुरू, दारूहरिद्रा आदि औषधीयां गुर्दों के लिए अत्यंत गुणकारी होती हैं। भृंगराज, कालमेघ, भूमि आंवला, कासनी, चिरायता आदि औषधीयां जिगर के स्वास्थ्य के लिए बेहद प्रभावी हैं। इनमें भृंगराज तो एक बहुत अच्छा रसायन माना जाता है, जिसमें सभी रोगों को नष्ट कर बुढ़ापे को दूर करने की शक्ति निहित है। प्राणवाही श्रोतों के स्वास्थ्य के लिए रूसाह/आधातोड़ा, शुंठी, मारिच, पिप्पली, त्वक आदि औषधियां और चौंसठ प्रहरी पीपली, वासावलेह, कंटकारी अवलेह, कनकासव आदि अत्यंत प्रभावी शास्त्रीय योग हैं।