छोटी इलायची के नाम और प्रकार:
आयुर्वेद में एला-गुजराती (क्योंकि बड़ी इलायची को एला-पूरबी या स्थूल-एला/स्थूलैला कहते हैं) के नाम से मशहूर छोटी इलायची को संस्कृत में सूक्ष्मैला (सूक्ष्म एला), क्षुद्रैला, गौराङ्गी, श्वेत एला, उपकुञ्चिका, तुत्था, कोरङ्गी, द्राविड़ी, त्रुटि, वयःस्था, तीक्ष्णगन्धा, मृगपर्णिका, कपोतपर्णी, त्रिपुटा/त्रिपुटि, पुटिका, गर्भारा🤔, निष्कुटि, छर्दिकारिपु,चन्द्रसम्भवा, चन्द्रबला, दिवोद्भवा आदि नामों से जाना जाता है। मसालों की रानी (क्वीन ऑफ़ स्पाइसेज़) इलायची का वैज्ञानिक नाम एलेटॉरिया कॉर्डमामम् और अदरक/सोंठ व हल्दी की करीबी रिश्तेदार है। इसे फारसी में हैल/हाल और अरबी में काकिले सिगारा कहते हैं।
छोटी इलायची के चार भेद होते हैं- मलाबारी, मैसूरी, मेंगलोरी और लंका अथवा जंगली।
आयुर्वेद में इलायची के औषधीय गुण-धर्म:
आयुर्वेदिक मत के अनुसार सूक्ष्मैला (सूक्ष्म एला) के बीज शीतल, तीक्ष्ण, कड़वे और सुगंधित होते हैं। यह पित्तजनक, मुख और मस्तक को शुद्ध करने वाले तथा गर्म-घातक*(गर्भघातक ) होते हैं। यह वात, श्वास, खासी, बवासीर, क्षयरोग, विषविकार, बस्ति रोग, गले के रोग, सुजाक, पथरी और खुजली का नाश करने वाले होते हैं।
महर्षि सुश्रुत तथा आचार्य वाग्भट्ट के अनुसार सूक्ष्मैला (सूक्ष्म एला) मूत्रकृच्छ्रनाशक, वंगसेन संहिता में हृदयरोगनाशक, द्रव्य रत्नाकर में अश्मरीनाशक तथा धन्वंतरि निघण्टु और भावप्रकाश निघण्टु में श्वास, खॉसी, क्षय और बवासीर नाशक माना जाता है।
भाव प्रकाश संहिता के अनुसार छोटी इलायची चरपरी, शीतल, हल्की और वात, श्वास, कफ, खांसी, बवासीर तथा मूत्रकृच्छ्र नाशक है।
यूनानी चिकित्सा मत के अनुसार इसका फल सुगंधित, हृदय को बल देने वाला, अग्निवर्धक, विवेचक, मूत्रनिस्सारक और पेट के आफरे दूर करने वाला होता है। इसके बीज सिरदर्द, कर्णशूल, दांत की पीड़ा, यकृत, वक्ष और गले के रोगों में लाभकारी है।
इलायची के औषधीय गुण:
यह पाचक, अमाशय तथा हृदय को शक्ति देने वाली, अरुचि और उबाक/उबकाई को बंद करने वाली तथा अपस्मार, मूर्छा और वायुजन्य सिरदर्द में लाभकारी है। इसके भुने हुए बीज संग्राही तथा गुर्दे और बस्ति की पथरी को निकालने वाले हैं। इसका तेल रतौंधी के लिए रामबाण की दवा माना जाता है। आंख में इसका तेल लगाने से पुरानी से पुरानी रतौंधी नष्ट हो जाती है*। इसको कान में डालने से कर्णशूल नष्ट होता है। छोटी इलायची को मस्तगी और अनार के स्वरस के साथ देने से वमन और मिचलाहट का नाश होता है। यह पाचन शक्ति को बहुत सहायता पहुंचाती है। अमाशय के विकारों को नष्ट करती है।
इंडियन मेडिसिनल प्लांट्स एन इलस्ट्रेटेड डिक्शनरी, स्प्रिंगर के अनुसार छोटी इलायची वायुनाशी, वमनरोधी, अग्निदीपक, पाचक, उदर शूल नाशक, दमा नाशक, कृमि नाशक और कफ शामक होती है। इलायची का तेल उद्वेष्टरोधी (मरोड़ अथवा ऐंठन नाशक) और रोगाणुरोधी होता है। इसका उपयोग पेट फूलना, भूख न लगना, शूल, ब्रोंकाइटिस, अस्थमा आदि विकारों के लिए किया जाता है। सिरदर्द में बाम के रूप में इसका पेस्ट और गठिया में इसकी भूसी का प्रयोग किया जाता है।
इलायची के कैप्सूल कॉफी में कैफीन घटक को कम करते हैं। अरबी संस्कृति में इलायची और कॉफी के इस संयोजन को ‘गावा’ कहा जाता है जो सिरदर्द और तनाव से राहत के लिए अत्यन्त लोकप्रिय है। तिब्बती पारंपरिक चिकित्सा में, मोटापा, ग्लाइसेमिक असंतुलन, यकृत, गुर्दे और हृदय रोगों के इलाज के लिए इलायची को दालचीनी और पीपली के साथ प्रयोग किया जाता है। केरल और तमिलनाडु में, कुचली हुई इलायची को चाय के साथ उबाला जाता है ताकि चाय में एक सुखद सुगंध आ सके। इसे लोकप्रिय रूप से “एलाकाइटिया” कहा जाता है और इसका उपयोग अधिक काम के कारण थकान और अवसाद को दूर करने के लिए किया जाता है।
इलायची में β-कैरोटीन की पर्याप्त मात्रा पाई जाती है। भारतीय पारंपरिक/लोक चिकित्सा में, प्रतिदिन एक चम्मच शहद के साथ इलायची का सेवन आंखों की दृष्टि में सुधार करता है। ~ सिंह और सिंह, 1996। हालांकि यूएसडीए फूड डेटा सेन्ट्रल को इलाइची में विटामिन ए नहीं बताता है लेकिन अशोक कुमार et al. 2019 में इलायची में 0.5μg/g β-कैरोटिन पाया गया।
आधुनिक विज्ञान में इलायची के दाहशामक और सूजन नाशक, हृदय को हितकारी, एंटीऑक्सिडेंट, एंटीडायरील, एंटीकैंसर (अर्बुदरोधी) और दस्त रोधी गतिविधियों की पुष्टि की जा चुकी है। हालांकि ज्यादातर शोध कार्य इसके तेल की उपयोगिता को लेकर हुए हैं। ऐसे में अधिक शोधों की आवश्यकता है जो इलायची के पारम्परिक और शास्त्रीय औषधीय गुणों की पुष्टि कर सकें।
छोटी इलायची का भाव
- छोटी इलायची को बेशकीमती मशालों में शुमार किया जाता है। इलायची की खेती एक श्रम गहन खेती है जिसमें सभी काम हाथों से करने होते हैं यह इतना महंगा है।
- दूसरे इसकी कटाई इसके पकने से ठीक पहले करनी होती है क्योंकि कच्ची फसल में दाने ठीक से नहीं बैठते और पूरी तरह पाक जाने पर ये खराब हो जाते हैं। इसलिए इसे हाथ से ही चुनना पड़ता है जोकि अत्यंत श्रमसाध्य और जटिल प्रक्रिया है। इस मसाले को प्राप्त करने के लिए समय और देखभाल की आवश्यकता होती है।
- तीसरे इसके उत्पादन और मांग का अंतर ज्यादा है। इसलिए यह एक बेहद महंगा मसाला है।
- December 2023 में भारत में इसका थोक भाव 1,00,000-2,00,000रु प्रति क्विंटल (1000-2000रु प्रति किलो) था।
इलायची के उपयोग में सावधानियाँ:
वनौषधि चंद्रोदय के अनुसार इलायची के बीजों में गर्भघातक गुण पाया जाता है इसलिए इसके औषधीय प्रयोग हेतु सेवन में विशेष सावधानी की महती आवश्यकता है।
इलायची के बीज पित्त की पथरी (गालस्टोन) के शूल (ऐंठन दर्द) को ट्रिगर कर सकते हैं इसलिए पित्त की पथरी के रोगियों के लिए यह अनुशंसित नहीं है। ~जर्मन कमीशन ई, पीडीआर, नेचुरल मेडिसिनस् कॉम्प्रिहेंसिव डाटाबेस, 2007
छोटी इलायची के फायदे अनेकानेक हैं लेकिन इसके उपयोग में सावधानी की जरूरत है।
डिस्क्लेमर: विशेष सूचना/अस्वीकरण: औषधियों के सेवन के लिए चिकित्सकीय परामर्श किया जाना सलाहनीय है। यह लेख सिर्फ जागरूकता और जानकारी बढ़ाने के उद्देश्य से प्रेरित है, इसे किसी तरह की चिकित्सकीय परामर्श के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। इस लेख में जानकारियां आधुनिक वैज्ञानिक शोधों और आयुर्वेद के प्राचीन मूल/प्रमाणिक ग्रन्थों से ली गई हैं जिनके सही होने का दावा लेखक नहीं करता है।
सन्दर्भ ग्रन्थ और शोधपत्र:
- Ayurveda Classical Text
- Maharshi Sushrut. (800BCE – 600BCE). Sushrut Samhita
- Acharya Charak. (100BCE – 200CE). Charak Samhita.
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- Sen, Govind Das. (1925AD). Bhaishajya Ratnavali.
- Bhandari, Chandraraj (1938AD). Vanoushadhi Chandroday.
- Modern Reseach Papers
- Ashokkumar, Kaliyaperumal et al. “Botany, traditional uses, phytochemistry and biological activities of cardamom [Elettaria cardamomum (L.) Maton] – A critical review.” Journal of ethnopharmacology vol. 246 (2020): 112244.
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- Korikanthimathm, Vs & Prasath, D. & Rao, Govardhana. (2001). Medicinal properties of Elettaria cardamomum. J Med Aromat Plant Sci. 22/23.
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