पुनर्यौवन और सौन्दर्य का खजाना
केशरंजन अथवा भृंगराज: प्राचीन आयुर्वेद के तिरोहित ज्ञान के खजाने से
भृंगराज अपनी मजबूत पुनर्जीवन और बुढ़ापा रोधी क्षमता के लिए सदियों से आयुर्वेद में एक प्रसिद्ध जड़ी बूटी है।
आयुर्वेद में भांगरे अर्थात घमिरा को भृंगराज, केशरंजन, केशराज, मार्कव, अंगारक आदि नामों के उल्लिखित किया गया है.
12वीं-14वीं सदी के आयुर्वेदिक ग्रंथ भावप्रकाश निघंटु के अनुसार, अंगारक अथवा भृंगराज गुणों में तिक्त, कटु, रूखा, उष्णवीर्य और रसायन होता है।
प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों के अनुसार यह त्वच्य, रसायन, चाक्षुष्य, केश्य, दंत्यों, बल्य, आदि गुणों से युक्त होता है.
आयुर्वेद के अनुसार यह सूजन, हर्निया, नेत्र रोग, कफ, वात, खांसी, दमा, श्वेत कुष्ठ, पाण्डु रोग, हृदय रोग, चर्म रोग, खुजली, रतौंधी, उपदंश और विष को नष्ट करने वाला होता है।
इसकी मुख्य क्रिया यकृत के ऊपर होती है। इसको लेने से यकृत की विनिमय क्रिया सुधरती है। पित्त का संचालन व्यवस्थित रूप से होता है जिससे सारे शरीर में ओज और कांति की वृद्धि होती है।
यकृत वृद्धि और तिल्ली की वृद्धि कम हो जाती है। बवासीर, उदर संबंधी रोग, अग्निमांद्य भी इससे मिट जाते हैं।
भृंगराज लीवर के कार्य को सुधरता है जिससे शरीर को डिटॉक्स करने में सहायता मिलती है।
यह दिमाग को शांत करता है जिसके कारण यह तनाव और चिंता को कम करने में मदद कर सकता है।
भृंगराज शराब तथा विष से प्रेरित लीवर क्षति के जोखिम को कम करता है।
यह बालों की जड़ों को मजबूत कर बालों का झाड़ना रोकता है.
भृंगराज को आयुर्वेद में मार्कव अथवा केशरंजन कहते हैं जिसका तात्पर्य असमय सफ़ेद हो रहे बालों को पुनः काला करने वाला.
भृंगराज बालों की वृद्धि को उत्तेजित करता है, जिससे बाल तेजी से बढ़ते हैं।
भृंगराज बालों के जीवंत विकास और रंग निखारने के लिए एक प्राकृतिक समाधान के रूप में उभरता है।
गर्भपात और गर्भावस्था को रोकने के लिए तथा प्रसूति के पश्चात गर्भाशय में होने वाली वेदना को रोकने के लिए इसका उपयोग किया जाता है।
इसके अलावा भृंगराज में रूप-वर्ण को पुनर्स्थापित करने का गुण भी होता है.
भृंगराज एक चमत्कारी जड़ी-बूटी है जिसका उपयोग काढ़ा, तेल या चूर्ण सहित विभिन्न तरीकों से किया जा सकता है।